जब भी किसी पुरुष और कन्या की कुंडली मे प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव मे से किसी एक भाव मे मंगल स्थित हो, इस प्रकार के योग के बनने से विवाह मे देरी, विवाह के पश्चात कलह एवं वैवाहिक जीवन मे सुख मे कमी होती है। कन्या या पुरुष की कुंडली मे सप्तम या द्वादश भाव पाशविक गृह से पीड़ित हो या शुक्र, सूर्य, सप्तमेश और द्वादशेष शनि गृह से वशीभूत हो। इस प्रकार की कुंडली वाले पुरुष या कन्या को अपने विवाह से पूर्व अर्क/कुम्भ विवाह करना चाहिए।